“राज्यपाल के खिलाफ कोई अपमानजनक टिप्पणी न करें”: ममता बनर्जी से हाईकोर्ट ने कहा
नई दिल्ली:
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस के खिलाफ कोई भी अपमानजनक या गलत बयान देने से रोक दिया और कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता “कोई अप्रतिबंधित अधिकार नहीं है” जिसके तहत अपमानजनक बयान दिए जा सकें।
अदालत ने कहा, “प्रतिवादियों को 14 अगस्त 2024 तक प्रकाशन और सोशल प्लेटफॉर्म के माध्यम से वादी (राज्यपाल) के खिलाफ कोई भी अपमानजनक या गलत बयान देने से रोक दिया गया है।” अदालत इस मामले की अगली सुनवाई 14 अगस्त को करेगी।
इसमें कहा गया है, “यदि इस स्तर पर अंतरिम आदेश नहीं दिया जाता है तो इससे प्रतिवादियों को वादी के खिलाफ अपमानजनक बयान जारी करने और वादी की प्रतिष्ठा को धूमिल करने की खुली छूट मिल जाएगी।”
सुश्री बनर्जी के वकील संजय बसु ने एक बयान में कहा कि अदालत के आदेश को उच्च पीठ के समक्ष चुनौती दी जाएगी।
अदालत ने कहा कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार “कोई अप्रतिबंधित अधिकार नहीं है, जिसकी आड़ में किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए अपमानजनक बयान दिए जा सकें”।
श्री बोस ने सुश्री बनर्जी, दो नवनिर्वाचित विधायकों और एक अन्य तृणमूल कांग्रेस नेता को राजभवन में कथित घटनाओं के संबंध में टिप्पणी जारी करने से रोकने की मांग की थी।
बंगाल के राज्यपाल ने ममता बनर्जी की उस टिप्पणी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया है जिसमें उन्होंने कहा था कि महिलाओं ने राजभवन जाने को लेकर डर जताया है। उन्होंने यह टिप्पणी पार्टी के दो नवनिर्वाचित विधायकों के शपथ ग्रहण समारोह को लेकर असमंजस की स्थिति पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए की थी। उन्होंने राजभवन जाकर शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के राज्यपाल के निमंत्रण को स्वीकार न करने के उनके फैसले का समर्थन किया था।
विधायक सायंतिका बनर्जी और रेयात हुसैन सरकार ने उन्हें पत्र लिखकर विधानसभा में शपथ लेने की मांग की थी।
2 मई को राजभवन की एक संविदा महिला कर्मचारी ने श्री बोस पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था जिसके बाद कोलकाता पुलिस ने भी जांच शुरू की थी। संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान उनके खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती।
श्री बोस ने सुश्री बनर्जी की टिप्पणी की आलोचना करते हुए कहा कि यह “गलत और निंदनीय धारणा” पैदा कर रही है।
आज न्यायमूर्ति कृष्ण राव ने कहा कि राज्यपाल एक संवैधानिक प्राधिकारी होने के नाते “सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का लाभ उठाकर प्रतिवादियों द्वारा उनके खिलाफ किए जा रहे व्यक्तिगत हमलों का सामना नहीं कर सकते।”
15 जुलाई की सुनवाई के दौरान तृणमूल कांग्रेस प्रमुख अपने बयान पर कायम रहीं और अपने वकील के माध्यम से कहा कि उनकी टिप्पणी जनहित के मुद्दों पर निष्पक्ष टिप्पणी थी, न कि मानहानिकारक।
सुश्री बनर्जी के वकील ने कहा कि उन्होंने राजभवन में कुछ कथित गतिविधियों को लेकर महिलाओं की आशंकाओं को ही दोहराया है।
यह मामला पहली बार 3 जुलाई को सुनवाई के लिए आया था। हालांकि, उस दिन कोर्ट ने निर्देश दिया था कि जिन मीडिया हाउस की रिपोर्ट्स मानहानि का आधार बनी हैं, उन्हें भी मामले में पक्ष बनाया जाए। फिर, अगली सुनवाई की तारीख 4 जुलाई तय की गई।
जब 4 जुलाई को मामला पुनः सुनवाई के लिए आया तो राज्यपाल के वकील ने अदालत को बताया कि मामले की सुनवाई कलकत्ता उच्च न्यायालय के रिकार्ड में दर्ज नहीं है।
इसके बाद अदालत ने सुनवाई स्थगित कर दी और अगली सुनवाई की तारीख 10 जुलाई तय की। मामले की अगली सुनवाई 15 जुलाई को तय की गई।
मुख्यमंत्री के अलावा, तृणमूल कांग्रेस के नेता कुणाल घोष और बारानगर से विधायक सायंतिका बनर्जी और भगवानगोला से विधायक रेयात हुसैन सरकार का नाम भी इस मुकदमे में शामिल है।