जांच एजेंसी का दावा, अरविंद केजरीवाल ने 'शराब घोटाले' में मिली रिश्वत का कुछ हिस्सा इस्तेमाल किया, आप ने किया खंडन
आप ने कहा कि केंद्र की भाजपा नीत सरकार एक ‘‘बड़ी साजिश’’ रच रही है।
नई दिल्ली:
प्रवर्तन निदेशालय ने आप प्रमुख के खिलाफ दायर आरोपपत्र में दावा किया है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली आबकारी नीति घोटाले में कथित तौर पर मिली 100 करोड़ रुपये की रकम का एक हिस्सा गोवा के एक आलीशान होटल में ठहरकर सीधे तौर पर इस्तेमाल किया।
संघीय जांच एजेंसी ने यह भी कहा कि इस संदर्भ में उनकी सरकार द्वारा गठित मंत्रिसमूह (जीओएम) एक “ढोंग” है।
विशेष धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) अदालत ने मंगलवार को 17 मई को दायर अभियोजन पक्ष की शिकायत पर संज्ञान लिया और जेल में बंद आम आदमी पार्टी (आप) नेता के लिए 12 जुलाई को पेशी वारंट जारी किया।
मामले में दायर सातवें पूरक आरोपपत्र में 55 वर्षीय राजनेता और आप को आरोपी बनाया गया है।
श्री केजरीवाल की भूमिका के बारे में 209 पृष्ठों के आरोपपत्र में कहा गया है, “दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, दिल्ली सरकार के मंत्रियों, आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं और अन्य व्यक्तियों के साथ मिलीभगत करके दिल्ली आबकारी घोटाले के मुख्य साजिशकर्ता और सरगना हैं।”
दिल्ली और पंजाब में सत्तारूढ़ आप ने मंगलवार को ईडी के आरोपपत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि केंद्र की भाजपा नीत सरकार पार्टी के खिलाफ ‘‘बड़ी साजिश’’ रच रही है और राजनीतिक संगठन को खत्म किया जा रहा है।
एजेंसी ने दावा किया, “अरविंद केजरीवाल ने अपराध की इन आय का एक हिस्सा सीधे तौर पर व्यक्तिगत रूप से इस्तेमाल किया है, इसके लिए उन्होंने चनप्रीत सिंह (मामले में एक अन्य आरोपी) को गोवा के ग्रैंड हयात में श्री अरविंद केजरीवाल के ठहरने और कार्यक्रम के लिए भुगतान करने को कहा है।”
इसमें कहा गया है कि केजरीवाल ने अपराध से प्राप्त इन आय को दिल्ली सरकार के धन में भी “मिला दिया”।
आरोप है कि राजनेताओं और शराब कारोबारियों के ‘साउथ ग्रुप’ ने 2021-22 के लिए दिल्ली की आबकारी नीति में अनुकूल स्थिति हासिल करने के लिए 100 करोड़ रुपये की रिश्वत दी और इन धनराशियों में से 45 करोड़ रुपये 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान गोवा में आप के प्रचार अभियान के लिए भेजे गए।
इसमें कहा गया है, “आप ने अपराध से अर्जित 45 करोड़ रुपये के खर्च को खातों से बाहर रखा और भारत के चुनाव आयोग को भी इसकी जानकारी नहीं दी।”
इस प्रकार, आरोप लगाया गया कि, श्री केजरीवाल का “प्रत्येक चरण में 100 करोड़ रुपये की अपराध आय पर नियंत्रण था, और इस प्रकार श्री अरविंद केजरीवाल द्वारा इस अपराध की आय पर सृजन, अधिग्रहण और कब्जा, हस्तांतरण, उपयोग और छिपाने तथा उसे बेदाग दिखाने की गतिविधियां की गईं।”
एजेंसी ने कहा कि केजरीवाल को पीएमएलए की धारा 4 के तहत धन शोधन के अपराध में उनकी भूमिका के लिए दंडित किया जाना चाहिए, साथ ही उन्हें “प्रतिनिधि रूप से” भी दंडित किया जाना चाहिए, क्योंकि वे आप के व्यवसाय/मामलों के संचालन के लिए जिम्मेदार हैं, जिसे पीएमएलए की धारा 70 के तहत एक कंपनी माना जाता है।
एजेंसी ने 21 मार्च को दिल्ली में अपने सरकारी बंगले से गिरफ्तार किए जाने के बाद से केजरीवाल का बयान 11 बार दर्ज किया, लेकिन आरोप लगाया कि हिरासत में पूछताछ के दौरान उन्होंने “गोलमोल जवाब” दिए और “सूचना छिपाई”।
ईडी ने कहा कि उसने केजरीवाल द्वारा इस्तेमाल किए गए कई डिजिटल उपकरण जब्त किए हैं लेकिन उन्होंने इन उपकरणों को खोलने से इनकार कर दिया और यह इनकार लिखित रूप में दर्ज किया गया तथा उनसे पूछताछ के वीडियो फुटेज में भी कैद हुआ।
आरोपपत्र में कहा गया है कि अपने बचाव में केजरीवाल ने ईडी के पूछताछकर्ताओं से कहा कि उनके वकीलों ने उन्हें सलाह दी है कि उन्हें इन उपकरणों का पासवर्ड साझा करने की “आवश्यकता नहीं है”।
ईडी ने दावा किया, “श्री केजरीवाल आप के अंतिम प्रभारी हैं और नीति निर्माण, रिश्वत योजना और इस प्रकार अर्जित धन के अंतिम उपयोग तथा साजिश में आंतरिक रूप से शामिल थे।”
इसमें कहा गया है कि आप के राष्ट्रीय संयोजक और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य होने के नाते श्री केजरीवाल गोवा विधानसभा चुनावों सहित चुनाव खर्चों में इस्तेमाल किए जा रहे धन के लिए अंततः जिम्मेदार हैं।
एजेंसी ने दावा किया कि मामले में एक अन्य आरोपी विनोद चौहान अरविंद केजरीवाल के माध्यम से दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) में अधिकारियों की पोस्टिंग का प्रबंधन कर रहा था।
आरोप है कि चौहान चुनाव प्रचार के लिए दी गई 45 करोड़ रुपये की कथित रिश्वत में से 25.5 करोड़ रुपये दिल्ली से गोवा स्थानांतरित करने के लिए जिम्मेदार थे।
ईडी ने कहा कि दिल्ली सरकार द्वारा गठित जीओएम “एक दिखावा है, जैसा कि आबकारी अधिकारियों के बयानों से पता चलता है, जिन्होंने खुलासा किया कि किसी भी प्रमुख नीतिगत निर्णय पर उनसे कभी परामर्श नहीं किया गया।”
इसमें कहा गया है कि दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने एजेंसी के समक्ष दर्ज कराए गए अपने बयान में कहा कि उन्होंने “नीतिगत बदलावों पर सहमति इसलिए जताई क्योंकि मनीष सिसोदिया (दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री) वरिष्ठ नेता हैं और उन्होंने कहा था कि लाभ मार्जिन को पांच प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करना अच्छा प्रस्ताव है और इसलिए उन्होंने (गहलोत ने) इसे स्वीकार कर लिया।”
ईडी ने आरोप लगाया है कि आबकारी नीति आप नेताओं द्वारा “लगातार अवैध धन जुटाने और उसे अपने और कुछ निजी व्यक्तियों तक पहुंचाने के लिए एक-दूसरे के बदले में षडयंत्र के परिणामस्वरूप” लाई गई थी।
आरोपपत्र में यह भी कहा गया है कि विजय नायर उनका “करीबी सहयोगी” था और उसने नीति के प्रारूपण में अनुकूल परिणाम के बदले में दिल्ली शराब व्यवसाय के विभिन्न हितधारकों से रिश्वत या कमीशन प्राप्त करने के लिए बिचौलिए के रूप में काम किया और केजरीवाल ने नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में उन्हें लाभ पहुंचाने के बदले में साउथ ग्रुप से कमीशन की मांग की।
इसमें कहा गया है कि जब कुछ एल1 थोक विक्रेताओं ने दिल्ली में आप को रिश्वत देने से इनकार कर दिया, तो राज्य के अधिकारियों के माध्यम से पंजाब में उनके व्यवसायों को निशाना बनाया गया और इसलिए उन्होंने उन्हें मजबूर करने में भूमिका निभाई।
इसमें कहा गया है कि बीआरएस नेता के. कविता ने “विजय नायर के माध्यम से साउथ ग्रुप के सदस्यों और आप नेताओं के साथ मिलकर 100 करोड़ रुपये की रिश्वत देने और अनुचित लाभ प्राप्त करने की साजिश रची।”
श्री केजरीवाल के आचरण के संबंध में आरोपपत्र में कहा गया है कि हिरासत में पूछताछ के दौरान उन्होंने गलत जानकारी दी तथा टालमटोल वाले जवाब दिए।
इसमें उनके 'भ्रामक जवाबों' का उदाहरण देते हुए कहा गया है, “जब विजय नायर से आरोपी अरविंद केजरीवाल के साथ उनके संपर्क और रिपोर्टिंग के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि विजय नायर उन्हें रिपोर्ट नहीं करते थे, बल्कि आतिशी मार्लेना और सौरव भारद्वाज को रिपोर्ट करते थे और श्री विजय नायर के साथ उनकी बातचीत सीमित थी। हालांकि, विजय नायर के खुद के बयानों से पता चलता है कि वह एक कैबिनेट मंत्री के बंगले में रहते थे और सीएम के कैंप कार्यालय से काम करते थे।”
आरोपपत्र में कहा गया है, “आरोपी ने आप के अन्य सदस्यों के खिलाफ भी झूठे और विपरीत साक्ष्य दिए हैं, जो उपलब्ध तथ्यों और रिकॉर्डों के विपरीत हैं। जब उसे अपनी पार्टी के नेताओं द्वारा दिए गए बयानों के बारे में बताया गया तो उसने उन्हें भ्रमित बताया।”
आबकारी मामला 2021-22 के लिए दिल्ली सरकार की आबकारी नीति तैयार करने और उसे क्रियान्वित करने में कथित भ्रष्टाचार और धन शोधन से संबंधित है, जिसे बाद में रद्द कर दिया गया था।
दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने कथित अनियमितताओं की सीबीआई जांच की सिफारिश की थी। इसके बाद ईडी ने पीएमएलए के तहत मामला दर्ज किया।
17 अगस्त, 2022 को दर्ज सीबीआई प्राथमिकी का संज्ञान लेते हुए, ईडी ने कथित अनियमितताओं की जांच के लिए 22 अगस्त, 2022 को धन शोधन का मामला दर्ज किया।
(शीर्षक को छोड़कर, इस कहानी को एनडीटीवी स्टाफ द्वारा संपादित नहीं किया गया है और एक सिंडिकेटेड फीड से प्रकाशित किया गया है।)